आदरणीय,
उत्तराखण्ड के महान नेताओं।
सबसे पहले उत्तराखण्ड की जनता से माफी मांगता हूं कि आपको महान शब्द से संबोधित कर रहा हूं पर फिर भी आपको महान कहना जरूरी लगता है क्योंकि जो कार्य आप कर रहे हो वो राजनीति के लिहाज़ से महान न हो लेकिन औछे व घिनौनेपन की महानता के रिकार्ड तोड़ रहा है। आज ज़बां कुछ तल्ख हो सकती है। जिम्मेदार आप ही हो। बोलने के लिए अल्फाज़ आपने ही दिये हैं। मैं तो बोल भी रहा हूं लेकिन मैंने कुछ चेहरो पर सिर्फ खामोशी देखी है। एक सपाट चेहरे पर आंसूओं में भीखी हुई खामोशी। उन आंसूओं को पढ़ने की कोशिश करता हूं तो एक धुंधला सा उत्तराखण्ड दिखाई देता है। वो उत्तराखण्ड जो मोक्षदायिनी गंगा का उद्गम स्थल है। भगवान शिव का निवास स्थान भी है और साबिर मियां का बसेरा भी। कई धर्मो का मेल है और धार्मिक सोहार्द भी लेकिन इस देवो की भूमि में कुछ राक्षसों का निवास हो गया है। कुछ राक्षस ओहदों पर बैठे हैं और कुछ ओहदों की तलाश में जीभ निकाले घूम रहे हैं। एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते मैं इन राक्षसों से ही मालुम करना चाहता हूं कि आखिर किस दिशा में इस प्रदेश को लेकर जा रहे हो? ये कहां कि इंसानियत है। क्या आपका ज़मीर मर चुका है। क्या सड़क पर लाकर छोड़ोगे उन पहाड़वासियों को जो रोटी का एक निवाला भी इतनी मेहनत से रखते हैं कि आंखों से आंसू निकल जाये। मैं तो मैदानी क्षेत्र में पला बढ़ा हूं फिर भी कभी पहाड़ में पत्रकारिता करने का अवसर मिला तो हमेशा पहाड़ के लोगों का दर्द अपने सीने में महसूस करके शहर लौटा हूं। आप तो उस के पहाड़ की कोख से ही जन्मे हो। आप के सामने आपके बाप दादा उस पहाड़ की ज़िन्दगी के जीते जागते गवाह थे। आप क्यों भूल गये थे कि पानी के चन्द कतरों के लिए भी पहाड़ की लम्बी चढाई से होकर गुज़रना पड़ता था। आप क्यों भूल गये थे कि घर में किसी बीमार को सड़क तक लाने के लिए भी सहारों की जरूरत पड़ती थी। बारिश होती थी तो टूटी छत से ज्यादा पहाड़ के मलबे का डर लगा रहता था। सर्दी होती थी तो कारोबार के लाले पड़ जाते थे। स्कूल जाते थे तो टूटी हुई चप्पल से झांकते कंकर पैर ज़ख्मी कर देते थे। क्या ज़रा से पैसों के लालच में उनका बलिदान, उनका दर्द, उनकी परेशानी, उनका संघर्ष भूल गये। आप क्यों भूल गये एक बच्चा जब खिलौने की ज़िद करता है और रोने के बाद जब खिलौना मिलता है तो वो उस खिलौने को जान से ज्यादा रखता है। आपने इस उत्तराखण्ड की मांग के लिए दो दशक तक संघर्ष किया था। सड़कों पर लाठी खायी थी। अपनी मां और बहनों की बेइज़्जती करायी थी। आपसे क्यों ये उत्तराखण्ड संभाल कर नहीं रखा गया। कौन आपके साथ नहीं था। छात्र, शिक्षक, वकील, जज, महिलायें, बच्चे, बुज़ुर्ग। वो संघर्ष सिर्फ इसलिए था कि शायद लखनऊ से बहने वाली बयार पहाड़ की ऊंचाइयों को नहीं छू पाती थी लेकिन आपने तो देहरादून को लखनऊ से भी दूर कर दिया। राज्य किस पार्टी के शासनकाल में बना ये मायने नहीं रखता है। राज्य के लिए किस पार्टी का संघर्ष सबसे ज्यादा रहा ये भी मायने नहीं रखता है। राज्य बनने के लिए किसकी राजनीति चमकी ये भी मायने नहीं रखता है। मायने सिर्फ ये रखता है कि पहाड़वासियों को अपना प्रदेश मिल गया था। सत्ता की चाबी पहाड़ का दर्द समझने वालों के हाथ में आ गई थी लेकिन आपने पहाड़ के ख्वाबों की वो ताबीर लिखी कि राजनीति भी शर्म से पानी पानी हो जाये। उधर वाजपेयी सरकार नये प्रदेश की रूपरेखा को धरातल पर उतार रही थी और इधर आप कुर्सी हथियाने के मंसूबे बना रहे थे। आपके उन मंसूबों का ऐसा ग्रहण इस नव प्रदेश को लगा कि आज तक प्रदेश सिर्फ मुख्यमंत्री बदलने की परम्परा को निभा रहा है। नित्यानन्द स्वामी से हरीश रावत तक ना पार्टी पूरी तरह किसी पर भरोसा जता सकी और ना ही प्रदेशवासियों के आप चहेते बन सके। तिवारी के वो 5 साल भी ऐसे कटे कि उनके समर्थकों को रोज शाम दिल्ली से किसी सूचना की आहट का डर लगा रहता था। खैर जनता भी क्या करती साहब। सिक्के के दो पहलू की तरह दो ही पार्टियां कुर्सी पर बैठाने के लिए दिखाई देती थी। क्षेत्रीय दल इतना निकम्मा निकलेगा ये तो किसी ने सोचा ही नहीं था। जो क्रंाति की बात करते थे वो एक फुलझड़ी से बहल जाते थे। स्वर्गीय इन्द्रमणि बडोनी के सपने और अभिलाषाओं को लालच की पोटली में बांधकर आपने गंगा में बहा दिया है। आज उनकी मूर्ति शहर के चैराहों पर धूल में लिपटी हुई दिखाई देती है वो सिर्फ उनकी मूर्ति नहीं है वाकई में वो असली पहाड़ की मूर्ति है जो किसी खास मौके पर फूल चढ़ाने के लिए आपको याद आती है। ऐसे में प्रदेश बनाने की जिम्मेदारी कमल के फूल और हाथ पर टिकी रही। जनता एक-एक करके आपको मौका देती रही। यूं तो दिखाने के लिए आप एक दूसरे के खून के भी प्यासे हो लेकिन हकीकत में आप एक ही हो। कमल का फूल हाथ पर टिका है और हाथ का सारा भार कमल के फूल पर है। सत्ता के आप इतने लोभी हो जाओगे यकीं नहीं होता। कौन आपको खरीद रहा है। कौन बेच रहा है। वो कौन सी नीतियां है कि एक दरवाज़ा लांघकर आप ठीक वैसे ही घर में प्रवेश कर रहे हो। राजनीति में अभिलाषायें होती हैं, मैं मानता हूं। हर नेता मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री बनने के ख्वाब देखते होंगे लेकिन आप ये क्यों भूल गये कि राजनीति में समर्पण भी होता है। जनप्रतिनिधि बनना सिर्फ पैसे और पावर कमाने का जरिया नहींे है। जनप्रतिनिधि बनने का मतलब है कि क्षेत्र की सभी जनता के दुखःदर्द अब हमारे हैं, उन्हें दूर करना हमारी जिम्मेदारी है। उनके सपने अब हमारे हैं उन्हें पूरा करना हमारा मकसद है। आपने तो विकास को भी सड़क-बिजली और पानी तक सीमित कर दिया है। एक पुश्ता बनाकर आपके नाम का बोर्ड टांग दिया जाता है। पुश्ता महीने दो महीने ना चलता हो लेकिन आपका बोर्ड सालों साल चलता है। आप भी सालों साल से चलते आ रहे हो लेकिन ना आपकी नीतियां टिकी और ना आपके कराये गये कार्य। अब आप ही बताइये प्रदेश की जनता आप पर क्यों विश्वास करे। कभी आप चुनाव चिहन और झण्डे कपड़ों की तरह बदलते हो तो कभी आप कई दशकों से साथ अपने भाइयों को एक झण्डे के नीचे नहीं रख पाते हो। बताइये प्रदेश की जनता आप पर क्यों विश्वास करें। आप जनता के बीच जाकर विज़न और मिशन के वादे करते हो और ए.सी. के कमरों में आपके विज़न और मिशन फरेब में बदल जाते हैं। चुनाव तो आते जाते रहेंगे पर आप तय कर लीजिए कि पहाड़ की भावनाओं के अनुरूप कार्य करना है या स्वयं का भला करना है। अब आप की उम्र सफेद बालों में झलकने लगी है। आपके बच्चे बड़े हो चुके हैं, उनमें आपकी दी हुई शिक्षा कूट-कूटकर दिखाई देती है। ये पीढ़ी आपकी बनायी हुई है लेकिन इनसे आगे की पीढ़ी आपको किस रूप में याद रखेगी। कहते हैं कि हमारे पड़ोसी राज्य हिमाचल में यशवंत सिंह परमार आज भी लोगों के दिलों में ज़िन्दा है। आपमें से कोई परमार क्यों नहीं बन पाया। आप में से कोई पूरे प्रदेश का नेता क्यों नहीं बन पाया। आप गढ़वाल और कुमाऊं तक सीमित रहे। ब्रहाम्ण, ठाकुर और दलित तक सीमित रहे और यही मानसिकता आपने प्रदेशवासियों में पैदा की है। अब ये मानसिकता बदलने का वक्त आ गया है और वो वक्त भी जल्दी आयेगा जब आपको बदला जायेगा। तब आप इस उत्तराखण्ड को देखना। आपके देखने की नज़र बदल जायेगी। आप फिर शायद विकास का गीत ना गाओ। फिर आप उत्तराखण्ड के किसी रिमोट क्षेत्र में जाना और वहां बैठे हुए किसी बुज़ुर्ग के चेहरे को गौर से देखना आपको असली उत्तराखण्ड नज़र आ जायेगा।