देहरादून: प्रदेश के वन मंत्री और अपने बयानों की वजह से हमेशा चर्चाओं में रहने वाले हरक सिंह रावत ने पूरे प्रदेश को ये कहकर चौका दिया कि उत्तराखण्ड का विकास हरीश रावत और रमेश पोखरियाल निशंक ही कर सकते हैं। भाजपा के पास जहां इस बयान का जवाब नहीं बन पा रहा है वहीं कांग्रेसियों के चेहरे खिल गये हैं और सोशल मीडिया पर उनके बयान को शेयर करके सियासी बदलाव को हवा दी जा रही है। हरक सिंह रावत की प्रदेश के दिग्गज नेताओं में गिनती की जाती है जो पिछले साल ही कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। कांग्रेस से पहले वो बसपा और जनता दल में भी रह चुके हैं। ऐसे में उनके बयान के बाद सियासी भूचाल सा आ गया है। कई तरह की कयासबाजी लगायी जा रही हैं। कुछ लोग इसे त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ शीत युद्ध बता रहे हैं तो कुछ लोगों का मानना है कि हरक सिंह रावत का मन भाजपा से भर चुका है। गौरतलब है कि 2012 में कांग्रेस की जीत के बाद हरक सिंह रावत ने विजय बहुगुणा का विरोध किया था और हरीश रावत का साथ दिया था। इसी के चलते उन्होंने मंत्री पद भी एक महीने बाद ग्रहण किया था, लेकिन फिर हरक और विजय बहुगुणा में ऐसी दोस्ती हुई कि उन्होंने ही सबसे पहले हरीश रावत के खिलाफ आवाज़ उठायी थी और सरकार गिराने में महत्त्वपूर्ण भूूमिका निभायी थी। यहीं नहीं अपने साथी विधायक मदन बिष्ट का स्टिंग जारी करके उन्होंने ये दिखा दिया था कि यदि पूरे प्रदेश में कोई हरीश रावत का विरोधी है तो वो हरक सिंह रावत हैं। ऐसे में सवा साल के बाद हरीश रावत की तारीफ के क्या मायने निकाले जाये ये सबसे बड़ा सवाल है। जहां तक रमेश पोखरियाल निशंक की प्रशंसा की बात है तो 2009 जनरल खण्डूड़ी के बाद जब रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया था तो बतौर नेता प्रतिपक्ष हरक सिंह रावत ने पुरानी दोस्ती को दुश्मनी में बदलते हुए हर तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ हर वो मुद्दे उठाये थे जो अति आश्चर्यजनक थे। यहां तक कि हरक सिंह रावत ने रमेश पोखरियांल निशंक की डाक्टरेट उपाधि पर भी सवालिया निशान खड़े कर दिये थे। उस समय विपक्ष के गंभीर आरोपों की बात हो या भाजपा की गिरती प्रतिष्ठा की, हाईकमान ने रमेश पोखरियाल निशंक को हटाकर फिर जनरल खण्डूड़ी को कमान सौंप दी थी। ऐसे में हरक सिंह रावत के रमेश पोखरियाल प्रेम के क्या मायने निकाले जाये।
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