ICJ में भारत की इन दलीलों से नतमस्तक हुआ पाक

अंतरराष्ट्रीय कोर्ट में कुलभूषण जाधव मामले में हरीश साल्वे की दमदार पैरवी के आगे पाकिस्तान की दलीलों की हवा निकल गई। छुट्टी होने के बावजूद भारत के पक्ष को सुनने के बाद ICJ के मुख्य जज रोनी अब्राहम ने कुलभूषण जाधव की फांसी पर रोक लगा दी है। 15 बेंच जजों की बेंच वाली अंतरराष्ट्रीय कोर्ट ने रोनी अब्राहम के फैसले पर सहमति जतायी है और पाकिस्तान से फांसी पर रोक लगाने के साथ-साथ ये जानकारी भी विस्तृत तौर पर मांगी गयी है कि अब पाकिस्तान सरकार क्या कदम उठाने वाली है। इस पैरवी के कई दिलचस्प पहलू रहे है जिसमें सबसे बड़ा पहलू हरीश साल्वे की फीस को लेकर है। भारत के सबसे मंहगे वकील हरीश साल्वे ने मात्र एक रूपये में इस केस की पैरवी की है, जबकि पाकिस्तान ने केस लड़ने के लिए करोड़ों खर्च किये हैं। आइये पढ़ाते हैं आपको इस केस की वो महत्त्वपूर्ण दलीलें जिसने पाकिस्तान को नतमस्तक कर दिया –
1. कोर्ट ने कहा कि भारत की दलील थी कि पाक ने विएना संधि का उल्लंघन किया है। जाधव को मौत की सजा पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने सुनाई है। कोर्ट ने कहा कि 1977 से ही भारत और पाकिस्तान दोनों ही इस से जुड़े हुए हैं। कोर्ट ने संधि के आर्टिकल 36 के तहत भारत की दलील का सही माना, जो पाकिस्तान के लिए बड़ा झटका है।

2. कोर्ट के अनुसार दोनों देशों ने माना की जाधव भारतीय हैं। इसके अलावा कोर्ट ने कहा भारत को कॉन्सुलर एक्सेस मिलना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि प्रथम दृष्टि में जाधव आतंकवादी या जासूस साबित नहीं होते। भारत ने लगातार कहा था कि उसके पास कॉन्सुलर एक्सेस का अधिकार है, जिससे पाकिस्तान लगातार इनकार कर रहा था।

3. कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तान का कानून के अनुसार जाधव के पास कोर्ट याचिका दायर करने के लिए 40 दिन का समय था। जाधव की मां ने 26 अप्रैल 2017 को याचिका दायर की थी, जो उसके समय सीमा के हिसाब से ठीक थे।

4. कोर्ट ने कहा कि पाकिस्तान कोई ऐसा कदम न उठाए, जिससे यह लगे कि जाधव मामले वो पूर्वाग्रह से प्रेरित है। कोर्ट ने माना कि जाधव की जान को खतरा है। कोर्ट ने चिंता जताई कि पाकिस्तान ने ऐसी कोई प्रतिबद्धता नहीं दिखाई कि जाधव को फांसी नहीं दी जाएगी। साथ ही यह भी कहा गया कि अंतिम फैसला आने तक जाधव को नहीं फांसी नहीं दी जा सकती।

5. इसके अलावा कोर्ट ने पाकिस्तान की दलील खारिज करते हुए कहा कि दोनों ही देशों ने ऐसी कोई दलील ने दी जिससे दोनों मुल्कों के बीच की 2008 की द्विपक्षीय संधि के आधार पर विएना संधि को खारिज किया।